Laali
रात गए जब अन्धकार में सारा संसार सो जाता, और मन में निराशा जगह बनाती भोर हुए, आस दिलाने को आती क्षितिज की पहली लाली सांझ हुए अन्धकार में घर का रस्ता भूल कर इधर-उधर जब भटके पंक्षी राह दिखलाने को उसको आती चंदा की कोमल लाली जाड़े की कठोर कम्पन्न से जब अंग-अंग ठिठुरता ऊर्जा संजो कर अपने भीएतर ह्रदय वेग को मद्धम करने आती आदित्य की चंचल लाली आहुति दे बलवान जब गिर पड़ते घायल हो उस पावन भूमि पर युध्य की धुल मंडराती सिर पर बलिदानी की शोभा बढ़ाने को आती शत्रु की लहू की लाली